आज कहानी राजस्थान के ‘सौंफ किंग’ नाम से मशहूर इशाक अली की। मूल रूप से गुजरात के मेहसाणा के रहने वाले इशाक 12वीं के बाद राजस्थान आ गए। यहां सिरोही जिले में पुश्तैनी जमीन पर पिता के साथ खेती-किसानी करने लगे। पहले गेहूं, कपास जैसी पारंपरिक फसलों की खेती करते थे। इसमें बहुत मुनाफा नहीं था। 2004 में नई तकनीक से सौंफ की खेती शुरू की। आज 15 एकड़ में 25 टन से ज्यादा सौंफ का उत्पादन करते हैं। उन्हें करीब 25 लाख रुपए सालाना का मुनाफा हो रहा है।
49 साल के इशाक बताते हैं, ‘घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए 12वीं के आगे पढ़ाई नहीं कर सका और खेती के लिए गांव लौट आया। पहले बिजनेस करने का मन बनाया, फिर सोचा क्यों न खेती को ही बिजनेस की तरह किया जाए।’
इशाक बताते हैं कि इस इलाके में सौंफ की अच्छी खेती होती है। इसलिए तय किया कि इसी फसल को नए तरीके से लगाया जाए। बीज की क्वालिटी, बुआई और सिंचाई का तरीका बदल दिया। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचने के लिए भी नई तकनीक का सहारा लिया। इन सबका फायदा यह हुआ कि सौंफ का प्रति एकड़ प्रोडक्शन बढ़ गया।
सौंफ की पारंपरिक खेती में क्यारियों के बीच गैप 2-3 फीट होता था, जिसे इशाक ने 7 फीट कर दिया। ऐसा करने से उत्पादन दोगुना हो गया।
नई किस्म लगाई तो 90% तक उपज बढ़ी इशाक ने 2007 में पारंपरिक खेती पूरी तरह छोड़ दी और अपनी पूरी जमीन पर सौंफ की बुआई कर दी। तब से लेकर अभी तक वे सौंफ की ही खेती कर रहे हैं। हर साल वो इसका दायरा बढ़ाते जाते हैं। उनके साथ 40-50 लोग हर दिन काम करते हैं। खेती के साथ-साथ उन्होंने सौंफ की नर्सरी भी शुरू की है। उन्होंने सौंफ की एक नई किस्म तैयार की है। जिसे ‘आबू सौंफ 440’ के नाम से जाना जाता है।
इशाक बताते हैं कि सौंफ के उन्नत किस्म के इस्तेमाल ने उपज 90% तक बढ़ा दी। इशाक की तैयार ‘आबू सौंफ 440’ किस्म इस समय गुजरात, राजस्थान के ज्यादातर हिस्सों में बोई जा रही है। वे हर साल 10 क्विंटल से ज्यादा सौंफ का बीज बेच देते हैं। इशाक नेशनल और स्टेट लेवल पर कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
नए प्रयोग से दोगुना हुआ मुनाफा
सौंफ की खेती में ज्यादा पैदावार लेने के लिए इशाक ने सबसे पहले बुआई का तरीका बदला। उन्होंने दो पौधों और दो क्यारियों के बीच दूरी को बढ़ा दिया। पहले दो क्यारियों के बीच 2-3 फीट का गैप होता था, जिसे इशाक ने 7 फीट कर दिया। ऐसा करने से उत्पादन दोगुना हो गया। सिंचाई की भी जरूरत कम हो गई।
इशाक बताते हैं कि सौंफ में ज्यादातर बीमारियां नमी, आद्रता और ज्यादा पानी देने की वजह से होती हैं। क्यारियों के बीच की दूरी बढ़ने से सूर्य का प्रकाश पूरी तरह फसलों को मिलने लगा और नमी भी कम हो गई। जिससे बीमारियों का खतरा कम हो गया।
इशाक बताते हैं कि पौधों के बीच दूरी बढ़ाने से ज्यादा खरपतवार नहीं उगे। इससे लेबर कॉस्ट बच गई। कई ओर तरीकों के इस्तेमाल से खेती का खर्चा 4-5 गुना कम हो गया।
सौंफ की खेती कैसे करें
जून के महीने में कई चरणों में सौंफ की बुआई होती है। अलग- अलग चरणों में इसलिए ताकि अलग-अलग वक्त पर नए पौधे तैयार हो सके। यदि मानसून के चलते देर से रोपाई करनी पड़े तो भी किसान को नुकसान नहीं होगा। एक क्यारी में औसतन 150-200 ग्राम बीज डाले जाते हैं। एक एकड़ जमीन में 6-7 किलो बीज लगता है। इसके 45 दिन के बाद यानी जुलाई के अंत में सौंफ के पौधों को निकालकर दूसरे खेत में रोपा जाता है। दो पौधों के बीच कम से कम एक फीट की दूरी रखनी चाहिए।
सिंचाई के लिए टपक विधि यानी ड्रिप इरिगेशन सबसे बढ़िया तरीका होता है। इससे पानी की भी बचत होती है। सौंफ की खेती में सिंचाई की जरूरत पहले बुआई के समय, फिर उसके 8 दिन बाद और फिर 33 दिन में होती है। इसके बाद 12 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए।
इशाक 15 एकड़ में सौंफ की खेती कर रहे हैं। इसकी एक फसल करीब 90 दिन में तैयार हो जाती है।
कब करें फसल की कटाई
सौंफ के अम्बेल (गुच्छे) जब पूरी तरह पककर सूख जाएं तभी उनकी कटाई करनी चाहिए। इसके बाद उसे एक-दो दिन धूप में सुखा देना चाहिए। हरा रंग रखने के लिए 8 से 10 दिन छाया में सुखाना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दानों में नमी नहीं रहे। इसके बाद मशीन की मदद से सौंफ की प्रोसेसिंग की जाती है। इशाक बताते हैं कि प्रति एकड़ सौंफ की खेती में 30-35 हजार रुपए का खर्चा आता है।