बेहतर सेक्स के लिए करें ये मुद्राएं : योग शास्त्र में ऐसी अनेक मुद्राएं और बंध हैं, जो सेक्सुअल पावर (Sexual Power) को बढ़ाते हैं. ये मुद्राएं व बंध स्वास्थ्यवर्द्धक होने के साथ-साथ शीघ्रपतन, मासिक स्राव व मेनोपॉज़ संबंधी समस्याओं को भी दूर करते हैं.
स्वास्थ्य और यौनशक्ति को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं- प्राण, संचित ऊर्जा, स्वस्थ नर्वस सिस्टम, रक्तप्रवाही ग्रंथियों का ठीक प्रकार से काम करना आदि. शारीरिक स्तर पर हेल्दी सेक्सुअल रिलेशन इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने तनावरहित हैं और किसी भी प्रतिक्रिया के प्रति कितने खुले और जागरूक हैं. योगाभ्यास द्वारा इन सभी चीज़ों को बढ़ाया जा सकता है.
आसन व सेक्सुअल पावर
आमतौर पर जहां आसन हमारे शरीर में प्राणशक्ति और लचीलापन बढ़ाकर हमें यौनदृष्टि से स्वस्थ रखते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ विशेष मुद्राएं हैं, जो हमारी खोई हुई यौन उत्तेजना को पुनः प्राप्त करने में हमारी मदद करती हैं. ‘थंडर बोल्ट पोश्चर’ और ‘स्पाइन थंडर बोल्ट पोश्चर’ (जिसमें व्यक्ति अपनी मूल मुद्रा में एड़ियों के बल बैठने के बाद अपनी पीठ के बल चित्त लेट जाता है) उन्हीं में से हैं. शोल्डर स्टैंड, प्लग, नोबरा, बो, लोकस्ट और स्पाइनल ट्विस्ट- ये अनेक तरी़के हैं, जो सेक्स पावर को बढ़ाकर शरीर में यौन-ग्रंथियों और प्रजनन अंगों को दृढ़ता व उत्तेजना प्रदान करते हैं. पेल्विक व स्पाइन को भी गतिशीलता व लचीलापन प्रदान करने के साथ-साथ ये शीघ्रपतन, मासिक रक्तस्राव और मेनोपॉज़ में आनेवाली कठिनाइयों, प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना, स्त्रियों में कामशीतलता व पुरुषों में नपुंसकता आदि विकारों को रोकने में भी सहायक होते हैं.
शक्तिवर्द्धक मुद्राएं
‘हठ योग’ में ऐसी निश्चित मुद्राएं व बंध हैं, जो हमारे यौनांगों व मांसपेशियों पर प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. मुद्रा एक तरह से ‘सील’ या ‘तालाबंद’ (lock) करना है और बंध से तात्पर्य बांधने, रोकने से है. ये दोनों ही प्राण वायु को शरीर में रोके रखने की तकनीकें हैं और इनमें अंतर केवल सैद्धांतिक ही है.
महामुद्रा (Great Seal)- इस मुद्रा में बायां पैर मोड़कर उसकी एड़ी से गुदाद्वार पर दबाव डाला जाता है. दायां पैर पूरी तरह फैला रहता है और आगे की तरफ़ झुक कर, ठोड़ी से दाएं पैर के पंजे को छूने का प्रयास किया जाता है. यही क्रिया फिर दाएं पैर को मोड़कर दोहराई जाती है.
महाबंध (Great Binding)- पैरों की अलग स्थिति के कारण यह ‘महामुद्रा’ से भिन्न है. एक पैर की एड़ी को मोड़कर गुदाद्वार पर दबाव डाला जाता है, लेकिन दूसरा पैर फैले रहने के बजाय, मोड़कर उसका पंजा पैर की जंघा के मोड़ के पास रखा जाता है.
महावेध (Great Piercing)- इस आसन में या तो ‘महाबंध’ या अन्य किसी भी ध्यान की मुद्रा में बैठा जा सकता है. गहरी सांस खींचकर, उसे रोककर, ‘जालंधर बंध’ (Chin Lock) लगाया जाता है. दाईं हथेली दाएं कूल्हे के पास और बाईं हथेली बाएं कूल्हे के पास ज़मीन पर रहती है. इस मुद्रा में हथेली व कूल्हे से रुक-रुक कर ज़मीन पर दबाव
डालते हैं.
उड्डीय मुद्रा (Abdominal Retraction)– इस मुद्रा में सांस को पूरी तरह बाहर निकालकर, पेट को पूरी तरह अंदर सिकोड़ा जाता है. योग शास्त्र के आरोग्य- सिद्धांत के अनुसार इसे शरीर की स्वच्छता की क्रिया के साथ-साथ ‘श्वास-नियंत्रण’ की सीमा माना जाता है.
मूलबंध- इस क्रिया में सिद्धासन में बैठकर एक पैर की एड़ी गुदाद्वार के सामने और दूसरी एड़ी प्यूबिस के सामने रखी जाती है. यदि सिद्धासन में बैठना कठिन हो, तो सुखासन में भी बैठकर इसे किया जा सकता है. नाभि के नीचे पेट के निचले हिस्से को अंदर सिकोड़ कर पीछे रीढ़ की हड्डी की तरफ़ खींचा जाता है. इस क्रिया में गुदा व नाभि को एक साथ सिकोड़ने का प्रयास करना चाहिए. जब तक संभव हो पेट को सिकोड़े रखें, फिर ढीला छोड़ें. 15 मिनट के बाद यही क्रिया फिर दोहराएं.
अश्विनी मुद्रा- गुदा को सिकोड़कर मलद्वार में इस प्रकार तनाव (Tightness) उत्पन्न किया जाता है जैसा कि ‘मूल मुद्रा’ में किया जाता है. इस मुद्रा का नाम अश्व की मल निकास की प्रक्रिया के अनुरूप होने के कारण ‘अश्विनी मुद्रा’ रखा गया है.
जालंधर बंध (Chin Lock)- यौगिक श्वास-नियंत्रण की यह एक उन्नत क्रिया है. सांस को अंदर रोककर, ठोड़ी को नीचे झुकाकर, गले की हड्डी (Collar Bone) के ऊपर टिका दिया जाता है. सांस रोकने की यह क्रिया अन्य दो मुद्राओं- उड्डीयन बंध और मूल बंध के साथ की जाती है.
विपरीतकरणी बंध (Inverted Body Binding)- आसन होते हुए भी शास्त्रों में इसे मुद्रा के रूप में वर्णित किया गया है. थीओस बर्नार्ड ने इसे शीर्षासन के समरूप बताया है. जबकि अर्नेस्ट वूड इसे सर्वांगासन की तरह वर्णित करते हैं. प्रमुख तांत्रिक ग्रंथों में कहा गया है कि सिर ज़मीन पर टिका कर पैर आकाश की तरफ़ उठाओ- पहले दिन इस मुद्रा में कुछ ही क्षण रहो, फिर अगले दिन से धीरे-धीरे इसका समय बढ़ाओ.
वज्रोली मुद्रा– यह यौन-नियंत्रण की एक कला है, हालांकि ‘घरोन्द संहिता’ में इसका एक आसन के रूप में उल्लेख किया गया है. इस संहिता के अनुसार सीधे लेटकर दोनों पैर हवा में उठाएं, सिर भी ज़मीन से ऊपर रहे. ऋषियों द्वारा यह आसन शक्ति को जागृत करनेवाला तथा दीर्घायु प्रदान करनेवाला बताया गया है.
सहजोली और अमरोली मुद्रा– ये मुद्राएं वज्रोली मुद्रा के ही अन्य दो प्रकार हैं. वज्रोली मुद्रा को समाप्त करने के बाद स्त्री-पुरुष शांत बैठें व गाय के गोबर की भस्म अपने शरीर पर रगड़ें. यह सहजोली है और अमरोली का अर्थ है शीतल निर्झर के जल का पान करना.