पहला अफेयर: पहला-पहला प्यार है… : भारतीय नारी के लिए पहला प्यार ही उसके जीवन का आधार होता है. मम्मी-पापा ने भी बचपन से यही सिखाया था कि भारतीय संस्कृति में लड़कियां पहले शादी करती हैं और बाद में उन्हें प्यार होता है. उस वक़्त तक मैं प्यार के एहसास से भी अनजान थी. मेरा तो शौक़ था पढ़ाई और कविताएं लिखना.
जब मम्मी ने मेरी शादी का फैसला सुनाया, तब मेरी उम्र मात्र 17 वर्ष थी.
“पर अभी तो मुझे पढ़ना है.” मैं चिल्लाई थी.
“अभी कौन-सा शादी कर रहे हैं? तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.” मां ने मुझे आश्वस्त किया. आख़िर मैं भी जानना चाहती थी कि वो शख़्स कौन है? जब नाम सुना तो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई. हमारे सामनेवाले मकान में रहनेवाले राज ही मेरे होनेवाले पति थे.
मेरी ख़ामोशी को मेरी हां मान लिया गया था. बात आगे चली तो उनकी तरफ़ से भी हां कर दी गई. मेरी दो शर्तें थीं- एक तो मुझे पढ़ाई जारी रखनी है और दूसरी ये कि कॉलोनी में इस रिश्ते की चर्चा नहीं होनी चाहिए. .
हमारी सगाई कर दी गई, परंतु बाकी लोगों से इस बात को छुपाए रखा गया. एक दिन मम्मी से मिलने उनकी सहकर्मी आईं. उनको विदा करने मैं और मम्मी दरवाज़े तक आए तो सामने राज को खड़ा देखकर मैं छुपकर भागना ही चाहती थी कि मम्मी ने अपना पांव मेरे पांव पर ज़ोर से रख दिया. मैं घबरा-सी गई. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मम्मी ने पांव तब तक दबाए रखा, जब तक वो सहकर्मी विदा नहीं हो गई. उनके जाने के बाद मम्मी ने डांटा कि इस तरह भागने की क्या ज़रूरत थी. ऐसे तो किसी को न मालूम हो तो भी पता चल जाएगा.
आख़िर इस रिश्ते का ऐलान तो करना ही था. ऐलान होते ही चारों तरफ़ हंगामा हो गया था. इस तरह आमने-सामने घरों में रिश्ता होने का कॉलोनी में यह एक अनोखा उदाहरण था. लेकिन मैं इन सबसे दूर पढ़ाई में व्यस्त थी. मुश्किल ये थी कि अब उनका सामना करना भी दूभर हो गया था मेरे लिए. जैसे ही राज सामने दिखते, मैं भागकर अपने घर में घुसकर दरवाज़ा बंद कर लेती.
एक दिन मेरे पीठ दिखाते ही वे बोल पड़े, “नाराज़ हो क्या?” मेरे पांव ठिठक गए. दिल ने कहा, पलटकर देख लूं, पर संस्कारों में मिली मर्यादा मुझे राज को खुलेआम देखने से रोक रही थी.
बस, यहीं से कुछ हलचल-सी हुई मन में. मेरा कवि मन जो प्यार के विषय से अछूता था, कुछ चाहने लगा था. मेरी सारी भावनाएं कलमबद्ध होने लगी थीं. मन में राज के लिए प्यार का अंकुर फूट चुका था, लेकिन मैं उनसे मिलने का साहस नहीं कर पाई. हां, अपनी खिड़की से उनकी एक झलक पाने के लिए हमेशा बेताब रही.
एक दिन मैं अपनी पड़ोस की सहेली के घर बैठी थी कि राज वहां जान-बूझकर पहुंच गए. उन्हें देख मैं घबराहट के मारे सहेली के बाथरूम में जाकर घुस गई. बाथरूम में नल से पानी बह रहा था और नल था कि बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मेरे सारे कपड़े भीग गए. मैं फिर भी बाहर नहीं आई. मैं ख़ुद ही नहीं समझ पा रही थी, जिनको देखने के लिए मैं घंटों अपनी खिड़की में खड़ी रहती थी, उनके सामने आते ही मेरी ऐसी हालत क्यों हो जाती है?
वो पहली बार था, जब मैंने प्यार के एहसास को महसूस किया था. आख़िर दो वर्ष बाद इस प्यार की परिणति विवाह में हुई. अब तक डायरी में लिखी सारी भावनाएं शादी के बाद जब मैंने राज के सामने रखीं तो वे आश्चर्यचकित रह गए. बोले, “कभी चेहरा भी न दिखानेवाली लड़की अपने मन में इतनी भावनाएं रखती है मेरे प्रति.” आज ज़िंदगी में फूल ही फूल खिले हैं. हम दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे अपने पहले प्यार से बनी राहों पर चल रहे हैं.